Motivation story || मन का पिटारा आफत ढेर सारा ||
दो दोस्त थे. बड़ी अच्छी मित्रता थी उनमे. हालाँकि उनमे से एक तो साधारण घर का युवक था जबकि दूसरा पैसेवाले घर का था. हालाँकि धन का यह फासला दोनों की मित्रता में ज़रा-सी भी बाधक नहीं था. एक दिन ऐसा हुआ की गरीब दोस्त को स्कूटर की आवश्यकता पड़ी. उसके घर पे कुछ मेहमान आने वाले थे. तो उसे सामान वगैरह लाने की जल्दी थी. उधर उसके अमीर दोस्त के पास स्कूटर था ही, बीएस उसने एक दिन के लिए स्कूटर मांगना तय किया. और तय करते ही वह उसके पास स्कूटर मांगने चल भी पड़ा. अभी वह कुछ ही कदम चल था कि उसके मन एक विचार पकड़ा, कहीं ऐसा तो नहीं कि वह ना कह दे? फिर तुरंत दूसरा विचार आया कि ऐसा थोड़े ही है, इतने सालों की दोस्ती में मैंने कभी उससे कुछ माँगा नहीं है, भला दोस्ती में वह एक स्कूटर के लिए इंकार थोड़ी ही करेगा. वह फिर सोंच में पड़ गया, वह जरुर मना करेगा. वह दिखता है इतना सीधा थोड़े ही है. वह जरुर बहाना बनाएगा कि उसमे पेट्रोल नहीं है. कोई बात नहीं, मै भी कह दूंगा कि ला चाबी, पेट्रोल मै भरवा लूँगा.
बस इसी सोंच के साथ वह फिर विश्वास से भर गया. लेकिन अभी दो कदम ही चला था कि उसके मन ने एक नया उपद्रव पकड़ लिया. ... वह स्कूटर नहीं देने का हजार बहाने खोजेगा, उसकी दोस्ती-यारी सब उपरी ही है. उसे तो यह भी कहते देर नहीं लगेगी कि स्कूटर का टायर ही खराब है. या कहेगा मेरे घर पे भी कुछ मेहमान आए हैं; सो आज तो स्कूटर देना संभव नहीं. बस इतना सोचना था की उसे क्रोध आ गया. .... और इत्तिफाकन उसी दरमियान वह दोस्त के दरवाजे पर भी पहुँच गया.पहुँचते ही उसी क्रोधित अवस्था में उसने घंटी बजाई और योगनुयोग दरवाजा भी उसके दोस्त ने ही खोला. परन्तु चूँकि उसके क्रोध का आवेश उस वक्त अपने उफान पर गतिशील था, स्वाभाविक रूप से दोस्त को सामने देखते ही निकल पड़ा. वह सीधे चिल्लाते हुए बोला- भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारा स्कूटर. बहुत देख लिए पैसे वाले, तुम लोग कभी किसी के मित्र हो ही नहीं सकते. जाओ, आज से तुम्हारी-मेरी दोस्ती खत्म. बेचारा दोस्त तो हक्का-बक्का रह गया. उसे बात ही समझ नहीं आई.
कौन-सा स्कूटर और कहाँ के अमीर? ....पर उधर उसे यूँ ही अधर में छोड़ उसका गरीब दोस्त अपनी भडास निकालकर चलता बना.
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सार- बस, यही मनुष्य का मन है. वह अपने आप चलता है और ऐसा चलता है कि जो चीज अस्तित्व में नहीं है, उसे भी ले आता है. जिस बात से व्यक्ति का लेना-देना नहीं, अक्सर मनुष्य का मन उस हेतु भी उसे जवाबदार ठहरा देता है. और रिश्ते....! रिश्ते तो टिकने ही नहीं देता. अतः अगर जीवन में रिश्तों का सुख लेना चाहते हो तथा मनुष्य को अच्छे से समझना चाहते हो, तो दोष उनमे खोजने से पहले अपने मन और उसके उल्टे-सीधे आवेशों को अच्छे से परखना सीखो.
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